ताल प्रलंब
From जैनकोष
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1123/1130/11 तालशब्दो न तरुविशेषवचन: किंतु वनस्पत्येकदेशस्तरुविशेष उपलक्षणाय वनस्पतीनां गृहीतं...प्रलम्बं द्विविधं मूलप्रलम्बं, अग्रप्रलम्बं च। कन्दमूलफलाख्यं, भूस्यनुप्रवेशिकन्दमूलप्रलम्बं अङ्कुरप्रवालफलपत्राणि अग्रप्रलम्बानि। तालस्य प्रलम्बं तालप्रलम्बं वनस्पतेरङ्कुरादिकं च लभ्यत इति।=ताल प्रलम्ब इस सामासिक शब्द में जो ताल शब्द है उसका अर्थ ताड़ का वृक्ष इतना ही लोक नहीं समझते हैं। किन्तु वनस्पति का एकदेश रूप जो ताड़ का वृक्ष वह इन वनस्पतियों का उपलक्षण रूप समझकर उससे सम्पूर्ण वनस्पतिओं का ग्रहण करते हैं।...
‘ताल प्रलम्ब’ इस शब्द में जो प्रलम्ब शब्द है उसका स्पष्टीकरण करते हैं–प्रलम्ब के मूल प्रलम्ब, अग्र प्रलम्ब ऐसे दो भेद हैं। कन्दमूल और अंकुर जो भूमि में प्रविष्ट हुए हैं उनको मूलप्रलम्ब कहते हैं। अंकुर, कोमल पत्ते, फल और कठोर पत्ते इनको अग्रप्रलम्ब कहते हैं। अर्थात् तालप्रलम्ब इस शब्द का अर्थ उपलक्षण से वनस्पतियों के अंकुरादिक ऐसा होता है ( धवला 1/1,1,1/9 पर विशेषार्थ)।