बाली
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
- बाली
पं. पु./9/श्लोक नं. किष्किन्धपुर के राजा सूर्यरज का पुत्र था (1) राम व रावण के युद्ध होने पर विरक्त हो दीक्षा धारण कर ली (90) । एक समय रावण ने क्रुद्ध हो तपश्चरण करते समय इनको पर्वत सहित उठा लिया । तब मुनि बाली ने जिन मन्दिर की रक्षार्थ पैर का अंगूठा दबाकर पर्वत को स्थिर किया (132) अन्त में इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया (221) ।
- बाली की दीक्षा सम्बन्धी दृष्टिभेद
पद्मपुराण/9/90 के अनुसार सुग्रीव के भाई बाली ने दीक्षा धारण कर ली थी । परन्तु महापुराण/68/164 के अनुसार बाली लक्ष्मण के हाथों मारा गया था ।
पुराणकोष से
किष्किन्धपुर के राजा सूर्यरज और उसकी रानी इन्दुमालिनी का पुत्र । यह सुग्रीव का अग्रज एवं श्रीप्रभा का भाई था । ध्रुवा इसकी भार्या थी । भोगों को क्षणभंगुर जानकर इसने गगनचन्द्र गुरु के निकट दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण की थी । यह एक समय योग धारण करके कैलास पर्वत पर तप कर रहा था । इसके तप के प्रभाव से रावण का विमान रुक गया था जिससे कुपित होकर रावण ने पर्वत सहित इसे समुद्र में फेंकने के लिए उठा लिया था किन्तु भरत के द्वारा बनवाये जिनमन्दिर नष्ट न हों इस भाव से इसने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया जिससे रावण भी दबने लगा था । मन्दोदरी के निवेदन पर ही रावण बच सका था । जिनेन्द्र के चरणों को छोड़ अन्य किसी को नमस्कार न करने की प्रतिज्ञा के पालन से ही उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई थी । रावण को दबाने के कार्य से बाद में यह दु:खी हुआ । गुरु के समक्ष प्रायश्चित्त लेकर इसने इस दुःख को दूर किया । फिर तप से कर्मों की निर्जरा करके केवली हुआ तथा निर्वाण प्राप्त किया । पद्मपुराण 9.1, 20, 78-161, 9.217-221 पूर्वभवों में यह मेघदत्त था, पश्चात् स्वर्ग गया और वहाँ से च्युत होकर सुप्रभ हुआ फिर इन पर्याय में आया । पद्मपुराण 106.187-197 महापुराण के अनुसार बाली का जीवन वृत्त इस प्रकार है― यह विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में किलकिल नगर के राजा विद्याधर बलीन्द्र और उसकी रानी प्रियंगुसुन्दरी का ज्येष्ठ पुत्र और सुग्रीव का अग्रज था । पिता के मरने पर यह तो किलकिल नगर का राजा हुआ और सुग्रीव युवराज । इसने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया और उसका राज्य-भाग अपने राज्य में मिला लिया वनवास की अवधि में जब राम चित्रकूट वन में थे इसने दूत के द्वारा यह कहलाया कि यह सीता की खोज के लिए स्वयं जा सकता है और रावण का मान भंग करके लंका से सीता को तत्काल ला सकता है । इसने यह भी कहलाया कि वे यह कार्य सुग्रीव और अनुमान को न दे । राम ने दूत के कथन का मन्तव्य जानकर अपने मन्त्रियों के परामर्श में अपने दूत के द्वारा इसे यह सन्देश भेजा कि यह उन्हें अपना महामेघ हाथी समर्पित कर दे तब वे भी इसके साथ लंका चलेंगे । इस सन्देश से इसने स्वयं को अपमानित समझा और राम के दूत से कहा कि उन्हें महामेघ गज तो उससे युद्ध में विजय प्राप्त करने से ही मिल सकेगा । परिणामत लक्ष्मण के नेतृत्व में खदिरवन में इससे राम का युद्ध हुआ जिसमें वह लक्ष्मण द्वारा मारा गया । महापुराण 68.271-275, 440-464