ममकार
From जैनकोष
तत्त्वानुशासन/14 शश्वदनात्मीयेषु स्वतनुप्रमुखेषु कर्मजनितेषु। आत्मीयाभिनिवेशो ममकारो मम यथा देह:।14। = सदा अनात्मीय, ऐसे कर्मजनित स्वशरीरादिक में जो आत्मीय अभिनिवेश है, उसका नाम ममकार है, जैसे मेरा शरीर। ( द्रव्यसंग्रह टीका/41/169/1 )।
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/14/122/15 मनुष्यादिशरीरंतच्छरीराधारोत्पन्नपञ्चेन्द्रियविषयसुखस्वरूपं च ममेति ममकारो भण्यते। = ‘मनुष्यादि शरीर तथा उस शरीर के आधार से उत्पन्न पञ्चेन्द्रियों के विषयभूत सुख का स्वरूप सो मेरा है’ इसे ममकार कहते हैं।