अग्रायणी
From जैनकोष
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,२/११५/१ अग्गेणियं णाम पुव्वं.....अंगाणगं वण्णेइ।
= अग्र अर्थात् द्वादशांगों में प्रधानभूत वस्तु के अयन अर्थात् ज्ञान को अग्रायण कहते हैं, और उसका कथन करना जिसका प्रयोजन हो उसे अग्रायणी पूर्व कहते हैं।
धवला पुस्तक संख्या ९/१,१,२/१२३/६ अंगाणमग्गपदं वण्णेदि त्ति अग्गेणियं गुणणामं।
= अंगों के अग्र अर्थात् प्रधानभूत पदार्थों का वर्णन करनेवाला होने के कारण `अग्रायणीय' यह गौण नाम है।
धवला पुस्तक संख्या १/४,१,४५/२२६/७ अगानामग्रमेति गच्छति प्रतिपादयतीति गोण्णणाममग्गेणियं।
= अंगों के अग्र अर्थात् प्रधान पदार्थ को वह प्राप्त होता है अर्थात् प्रतिपादन करता है अतः अग्रायणीय यह गौण नाम है।
- श्रुतज्ञान का द्वितीय पूर्व – देखे श्रुतज्ञान III/१।