वैयधिकरण्य
From जैनकोष
श्लोकवार्तिक/4/1/33/ न्या./459/551/16 पर भाषाकार द्वारा उद्धृतयुगपदनेकत्रावस्थितिर्वैयधिकरण्यम्। = एक वस्तु में एक साथ दो विरोधी धर्मों के स्वीकार करने से, नैयायिक लोग अनेकान्तवादियों पर वैयधिकरण्य दोष उठाते हैं।
सप्तभङ्गीतरङ्गिणी/82/1 अस्तित्वस्याधिकरणमन्यन्नास्तित्वस्याधिकरणमन्यदित्यस्तित्वनास्तित्वयोर्वैयधिकरण्यम्। तच्च विभिन्नकरणवृत्तित्वम्। = अस्तित्व का अधिकरण अन्य होता है और नास्तित्व का अन्य होता है, इस रीति से अस्तित्व और नास्तित्व का वैयधिकरण्य है। वैयधिकरण्य भिन्न-भिन्न अधिकरण में वृत्तित्वरूप है। [अर्थात् इस अनेकान्त वाद में अस्तित्व और नास्तित्व दोनों एक ही अधिकरण में हैं। इसलिए नैयायिक लोग इस पर वैयधिकरण्य नाम का दोष लगाते हैं।]