अक्ष
From जैनकोष
1. सर्वार्थसिद्धि अध्याय 1/12/103 अक्ष्णोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा। = पहिचानता है, वा बोध करता है, व्याप्त होता है, जानता है, ऐसा `अक्ष' आत्मा है।(राजवार्तिक अध्याय 1/12/2/53/11) ( प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 1/22) ( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 369/795) 2. पासा आदि - देखें निक्षेप - 4। 3. भेद व भंग- देखें गणित - II.3.1,2।