अप्रतिबुद्ध
From जैनकोष
समयसार / मूल या टीका गाथा संख्या १९ कम्मे णोकम्हि य अहमिदि अहकं च कम्म णोकम्मं। जा एसा खलु बुद्धी अपडिबुद्धी हवदि ताव ।।१९।।
= जब तक इस आत्माकी ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, भावकर्म और शरीरादि नामकर्ममें `यह मैं हूँ' और `मुझमें यह कर्म नोकर्म हैं' ऐसी बुद्धि है, तब तक यह आत्मा अप्रतिबुद्ध है।