क्षेत्र - वेद
From जैनकोष
- वेद मार्गणा
प्रमाण |
मार्गणा |
गुण स्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना व कषाय समुद्घात |
वैक्रियक समुद्घात |
मारणान्तिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समु. |
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नं. 1 पृ. |
नं. 2 पृ. |
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347 |
स्त्रीवेदी (देवी प्रधान) |
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त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/असं, म×असं |
मारणान्तिक वत् |
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347 |
पुरुष वेदी |
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त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/असं, म×असं |
मारणान्तिक वत् |
केवल तैजस व आहारक मूलोघ वत् |
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348 |
नपुंसक वेदी |
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सर्व |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
सर्व |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
सर्व |
मारणान्तिक वत् |
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348 |
अपगत वेदी |
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च/असं, म×सं |
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च/असं, म×असं |
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111 |
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स्त्री वेदी |
1 |
— |
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स्व ओघ वत् |
— |
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— |
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111 |
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2-9 |
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— |
मूलोघ वत् |
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चौथे में उपपाद नहीं |
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112 |
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पुरुषवेदी |
1 |
— |
— |
स्व ओघ वत् |
— |
— |
— |
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112 |
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2-9 |
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मूलोघ वत् |
— |
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केवल तै.आ. |
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113 |
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नपुंसक वेदी |
1 |
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स्व ओघ वत् |
— |
— |
— |
— |
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113 |
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2-9 |
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मूलोघ वत |
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114 |
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अपगत वेदी (उप.) |
9-11 |
च/असं, म×सं |
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च/असं, म×असं |
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114 |
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अपगत वेदी (क्षपक) |
9-12 |
च/असं, म×सं |
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114 |
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13-14 |
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मूलोघ वत् |
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