अभिनन्दन
From जैनकोष
(महापुराण सर्ग संख्या ५० श्लो.सं.) पूर्वके तीसरे भवमें मंगलावती देश का राजा महाबल था ।।२-३।। दूसरे भवमें विजय नामक विमानमें अहमिन्द्र हुए ।।१३।। और वर्तमान भवमें चौथे तीर्थंकर हुए। आप अयोध्या नगरीके राजा स्वयंवरके पुत्र थे ।।१६-१९।। एक हजार राजाओं के संग दीक्षा धारण कर ली। उसी समय मनःपर्यायज्ञानकी प्राप्ति हो गयी ।।४६-५३।। अन्तमें मोक्ष प्राप्त किया ।।६५-६६।।
(विशेष देखे तीर्थंकर ५)।