ताप
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
सर्वार्थसिद्धि/6/11/329/1 परिवादादिनिमित्तादाविलान्त: करणस्य तीव्रानुशयस्ताप:।=अपवाद आदि के निमित्त से मन के खिन्न होने पर जो तीव्र अनुशय सन्ताप होता है, वह ताप है। ( राजवार्तिक/6/11/3/519 )। स्याद्वादमञ्जरी/32/342/ पर उद्धृत श्लो.3 जीवाइभाववाओ बंधाइपसाइगो इदं तावो। =जीवों से सम्बद्ध दु:ख और बन्ध को सहना करना ताप है।
पुराणकोष से
असातावेदनीय का आस्रव । हरिवंशपुराण 58.93