साकारमंत्रभेद
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/7/26/366/11 अर्थप्रकरणाङ्गविकारभ्रूविक्षेपादिभि: पराकूतमुपलभ्य तदाविष्करणमसूयादिनिमित्तं यत्तत्साकारमन्त्रभेद इति कथ्यते। = अर्थवश, प्रकरणवश, शरीर के विकारवश या भ्रूक्षेप आदि के कारण दूसरे के अभिप्राय को जानकर डाह से उसका प्रगट कर देना साकारमन्त्रभेद है। ( राजवार्तिक/7/26/5/554/1 )।