- महापुराण सर्ग संख्या २१/२२८ आध्यानं स्यादनुथ्यानम् अनित्यत्वादिचिन्तनः। ध्येयं स्यात् परमं तत्त्वम् अवाङ्मनसगोचरम्।
= अनित्यत्वादि १२ भावनाओंका बार-बार चिन्तवन करना आध्यान कहलाता है तथा मन और वचन के अगौचर जो अतिशय उत्कृष्ट शुद्ध आत्मातत्त्व है वह ध्येय कहलाता है।
- अध्यापनके अर्थमे - देखे अपध्यान /१।