कालानुयोग - लेश्या मार्गणा
From जैनकोष
10. <a name="3.10" id="3.10"></a>लेश्या मार्गणा—
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
|||||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
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नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
|||||||||||||
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
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|
||||||||||||||||
कृष्ण |
|
|
40-41 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
177-178 |
अंतर्मु. |
नील से कृष्ण पुन: वापिस |
33सा.+अंत. |
विवक्षित लेश्या सहित मनुष्य या तिर्यंच में अंतर्मुहूर्त रहा। फिर मरकर नरक में उपजा |
|||
नील |
|
|
40-41 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
177-178 |
अंतर्मु. |
कापोत या कृष्ण से नील पुन: वापिस |
17सा.+अंत. |
" (पंचम पृथिवी में) |
|||
कापोत |
|
|
40-41 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
177-178 |
अंतर्मु. |
नील या तेज से कापोत पुन: वापिस |
7 सा.+अंतर्मु. |
" (तीसरी " ") |
|||
तेज |
|
|
40-41 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
181-182 |
अंतर्मु. |
पद्म से तेज फिर वापिस |
2 सा.+अंतर्मु. |
उपरोक्तवत् परंतु देवों में उत्पत्ति |
पद्म |
... |
|
40-41 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
181-182 |
अंतर्मु. |
शुक्ल या तेज से पद्म फिर वापिस |
18 सा.+अंत. |
उपरोक्तवत् परंतु देवों में उत्पत्ति |
शुक्ल |
... |
|
40-41 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
|
अंतर्मु. |
पद्म से शुक्ल फिर वापिस |
33 सा.+अंत. |
उपरोक्तवत् परंतु देवों में उत्पत्ति |
कृष्ण |
1 |
283 |
|
|
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
284-285 |
|
अंतर्मु. |
नील से कृष्ण पुन: वापिस |
33 सा.+2अंत. |
उपरोक्तवत् स्व ओघवत् |
|
2-3 |
286-287 |
— |
सर्वदा |
मूलोघवत् |
— |
— |
286-287 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
|
4 |
288 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
289-290 |
|
अंतर्मु. |
नील से कृष्ण फिर वापिस |
33 सागर से 6 अंतर्मु.कम |
7 पृथिवी में (भवधारण के 5 अंतर्मु.पश्चात् से लेकर भवांत के 1 अंतर्मु.पहिले तक भवांत में नियम से मिथ्यात्व |
नील |
1 |
283 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
284-285 |
|
अंतर्मुहूर्त |
कृष्ण या कापोत से नील पुन: वापिस |
17 सागर+2 अंतर्मुहूर्त |
5वीं पृथिवी में (स्व ओघवत्) |
|
2-3 |
286-287 |
— |
|
मूलोघवत् |
|
|
286-287 |
— |
— |
–मूलोघवत्– |
|
— |
|
4 |
288 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
289-290 |
|
अंतर्मुहूर्त |
स्व मिथ्यादृष्टिवत् |
17 सागर से 3 अंतर्मु.कम |
कृष्णवत् पर भवांत में सम्यक्त्व सहित मरकर मनुष्यों में उत्पत्ति (5 वी पृथिवी) |
कापोत |
1 |
283 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
284-285 |
|
अंतर्मुहूर्त |
नील या तेज से कापोत पुन: वापिस |
7सागर+2अंतर्मु. |
स्व ओघवत् (3री पृथिवी में) |
|
2-3 |
286-287 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
286-287 |
— |
— |
–मूलोघवत्– |
— |
— |
|
4 |
288 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
289-290 |
|
अंतर्मुहूर्त |
स्व मिथ्यादृष्टिवत् |
7 सागर से 3अंतर्मु.कम |
नीलवत् 3 री पृथिवी में |
तेज |
1 |
291 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
292-293 |
|
अंतर्मुहूर्त |
पद्म से तेज फिर कापोत |
2सागर+पल्य/असं. |
मरण से अंतर्मु.पहिले कापोत से तेज/सौधर्म में उत्पत्ति/मरण समय लेश्या परिवर्तन |
|
2-3 |
294-295 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
294-295 |
— |
— |
–मूलोघवत्– |
— |
— |
|
4 |
291 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
292-293 |
|
अंतर्मुहूर्त |
मिथ्यादृष्टिवत् |
2<img src="JSKHtmlSample_clip_image002.png" alt="" width="9" height="38" /> सागर से 1 अंतर्मु.कम |
मिथ्यादृष्टिवत् पर अगले भव में उसी लेश्या के साथ गया/1 अंतर्मु.तक वहाँ भी वही लेश्या रही |
|
5-6 |
296 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
297-298 |
|
1 समय |
लेश्या परिवर्तन से या गुणस्थान परिवर्तन से दोनों विकल्प (देखो काल/5) |
अंतर्मुहूर्त |
विवक्षित लेश्या विवक्षित गुणस्थान में रहकर अविवक्षित लेश्या को प्राप्त हुआ |
पद्म |
1 |
291 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
292-293 |
|
अंतर्मुहूर्त |
शुक्ल से पद्म फिर तेज |
18सा.+पल्य/असं. |
तेजवत् परंतु तेज से पद्म व सहस्रार में उत्पत्ति |
|
2-3 |
294-295 |
|
|
मूलोघवत् |
|
|
294-295 |
— |
— |
–मूलोघवत् – |
— |
— |
|
4 |
291 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
292-293 |
|
अंतर्मुहूर्त |
मिथ्यादृष्टिवत् |
1 अंतर्मुहूर्त कम 18<img src="JSKHtmlSample_clip_image002_0000.png" alt="" width="9" height="38" />सा. |
तेजवत् |
|
5-6 |
296 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
297-298 |
|
1 समय |
तेजवत् |
अंतर्मुहूर्त |
तेजवत् |
शुक्ल |
1 |
299 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
300-301 |
|
अंतर्मुहूर्त |
पद्म से शुक्ल फिर पद्म |
31 सा.+ अंतर्मुहूर्त |
द्रव्यलिंगी मुनि स्व आयु में अंतर्मु.शेष रहने पर शुक्ल लेश्या धार उपरिम ग्रैवेयक में उपजा |
|
2-3 |
302-303 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
302-303 |
|
— |
–मूलोघवत् – |
— |
— |
|
4 |
304 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
304 |
|
अंतर्मु. |
पद्म से शुक्ल फिर पद्म |
33 सा.+ 1 अंतर्मुहूर्त |
अनुत्तर विमान से आकर मनुष्य हुआ। अंतर्मु.पश्चात् लेश्या परिवर्तन |
|
5-7 |
305 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
306-307 |
|
1 समय |
तेजवत् |
अंतर्मुहूर्त |
तेजवत् |
|
8-13 |
308 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
308 |
|
— |
–मूलोघवत्– |
— |
— |