योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 65
From जैनकोष
सर्व पदार्थगत सत्ता का स्वरूप -
ध्रौव्योत्पादलयालीढा सत्ता सर्वपदार्थगा ।
एकशोsनन्तपर्याया प्रतिपक्षसमन्विता ।।६५।।
अन्वय :- सत्ता ध्रौव्य-उत्पाद-लय-आलीढ़ा, एकश: सर्वपदार्थगा, अनन्तपर्याया, प्रतिपक्षसमन्विता (भवति) ।
सरलार्थ :- सत्ता अर्थात् अस्तित्व ध्रौव्योत्पादव्ययात्मिका, एक से लेकर सब पदार्थों में व्यापनेवाली, अनन्त पर्यायों को धारण करनेवाली और विरुद्ध पक्ष सहित अर्थात् असत्ता आदि के साथ विरोध न रखनेवाली होती है ।