अध्यात्म स्थान
From जैनकोष
समयसार / आत्मख्याति गाथा संख्या ५२/९४/६ - यानि स्वपरैकत्वाध्यासे सति विशुद्धचित्परिणामातिरिक्तत्वलक्षणान्यध्यात्मस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न सन्ति जीवस्य।
= स्वपर के एकत्व का अध्यास होनेपर विशुद्ध चैतन्य परिणाम से भिन्न लक्षणवाले अध्यात्म स्थान भी जीव के लक्षण नहीं है।