अनुग्रह
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या /७/३८/३७२ स्वपरोपकारोऽनुग्रहः। स्वोपकारः पुण्यसंचयः, परोपकारः सम्यग्ज्ञानादिवृद्धिः।
= अपना तथा दूसरे का उपकार सो अनुग्रह है। (दान विषैं) अपना उपकार तो पुण्य संचय है और परका उपकार सम्यग्ज्ञानादि की वृद्धि है।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या ७/३८,१/५५९/१५)।
राजवार्तिक अध्याय संख्या ४/२०, २/२३५/१३ अनुग्रह इष्टप्रतिपादनम्।
= इष्ट प्रतिपादन करना अनुग्रह है।
राजवार्तिक अध्याय संख्या ५/१७,३/४६०/२५ द्रव्याणां शक्त्यन्तराविर्भावे कारणभावोऽनुग्रह उपग्रह इत्याख्यायते।
= द्रव्य की अन्य शक्तियों के प्रगट होने में कारण भावको अनुग्रह या उपग्रह कहते हैं।