आगाल
From जैनकोष
स.सा./मी.प्र.८८/१२३/९ द्वितीयस्थितिद्रव्यस्यापकर्षणवशात्प्रथमस्थितावामगमागालः।
= द्वितीय स्थितिके निषेकनिकौ अपकर्षण करि प्रथम स्थितिके निषेकनि विषै प्राप्त करना ताका नाम आगाल है।
- प्रत्यागालका लक्षण
लब्धिसार / जीवतत्त्व प्रदीपिका / मूल या टीका गाथा संख्या ८८/१२३/९ प्रथमस्थितिद्रव्यस्योत्कर्षवशाद् द्वितीयस्थितौ गमनं प्रत्यागाल इत्युच्यते।
= प्रथम स्थितिके निषैकनिके द्रव्य कौं उत्कर्षण करि द्वितीय स्थितिके निषैकनि विषैं प्राप्त करना ताका नाम प्रत्यागाल है।
जैन सन्देश १३,१,५५ में श्री रत्नचन्द मुख्तयार। नोट - अन्तरकरण हो जानेके पश्चात् पुरातन मिथ्यात्व कर्म तो प्रथम व द्वितीय स्थितिमे विभाजित हो जाता है, परन्तु नया बन्धा कर्म द्वितीय स्थितमें पड़ता है। उसमें-से कुछ द्रव्य अपकर्षण द्वारा प्रथम स्थितिके निषेकोंको प्राप्त होता है उसको आगाल कहते है। फिर इस प्रथम स्थिति को प्राप्त हुए द्रव्योंमें-से कुछ द्रव्य उत्कर्षण द्वारा पुनः द्वितीय स्थिति के निषेकोंको प्राप्त होता है उसको प्रत्यागाल कहते हैं।