आरंभ
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ६/८/३२५/४ प्रक्रम आरम्भः।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ६/१५/३३३/९ आरम्भः प्राणिपीड़ाहेतुर्व्यापारः।
= कार्य करने लगना सो आरम्भ है।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या ६/८/४/५१४); (चारित्रसार पृष्ठ संख्या ८७/५)
प्राणियोंको दुःख पहुँचानेवाली प्रवृत्ति करना आरम्भ है।
राजवार्तिक अध्याय संख्या ६/१५/२/५२५/२५ हिंसनशीलाः हिंस्राः, तेषां हैंस्रम् आरम्भ इत्युच्यते।
= हिंसनशील अर्थात् हिंसा करना है स्वभाव जिनका वे हिंस्र कहलाते हैं। उनके ही कार्य हैंस्र कहलाते हैं। उनको ही आरम्भ कहते हैं।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा संख्या २२१ उपधिसद्भावे हि ममत्वपरिणामलक्षयायाः मूर्च्छा यास्तद्विषयकर्मप्रक्रमपरिणामलक्षणस्यारम्भस्य...।
= उपाधिके सद्भाव में ममत्व परिणाम जिसका लक्षण है ऐसी मूर्च्छा और उपाधि सम्बन्धी कर्म प्रक्रमके परिणाम जिसका लक्षण है ऐसा आरम्भ...।