पद्मगुल्म
From जैनकोष
पुष्करवर द्वीप के विदेह क्षेत्र में स्थित वत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा । ये उपाय, सहाय-साधन, देशविभाग, कालविभाग और विनिपात-प्रतीकार इन पाँचों राज्यांगों में संधि और विग्रह के रहस्यों को जानते थे । न्यायमार्ग पर चलने से इनके राज्य तथा प्रजा दोनों की समृद्धि बढ़ी । आयु के चतुर्थ भाग के शेष रहने पर वसंत की शोभा को विलीन होते देखकर थे वैराग्य को प्राप्त हुए । इन्होंने अपने पुत्र चंदन को राज्य सौंपकर आनंद मुनि से दीक्षा ली और विपाकसूत्र पर्यंत समस्त अंगों का अध्ययन किया चिरकाल तक तपश्चरण करने के पश्चात् इन्होंने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया और ये पंद्रहवें स्वर्ग आरण में इंद्र हुए । इस स्वर्ग से च्युत होकर यही राजा दृढ़रथ और रानी सुनंदा के पुत्र के रूप में दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ हुए । महापुराण 56. 2-68, हरिवंशपुराण 60. 153