प्रभासकुंद
From जैनकोष
कुशध्वज ब्राह्मण और उसकी भार्या सावित्री का पुत्र यह राष्ट्र का जीव था । (देखें शंभु ) इसने विचित्रसेन मुनि के पास दीक्षा लेकर तपश्चरण किया था । मरण काल में कनकप्रभ विद्याधर की विभूति देखकर इसने वैसा ही बनने का निदान किया था और निदान वश यह मरकर सनत्कुमार स्वर्ग में देव हुआ था । वहाँ से च्युत होकर यह लंका नगरी में रत्नश्रवा और उनकी रानी केकसी के रावण नाम का पुत्र हुआ । पद्मपुराण 106. 155-171