मंदुरा
From जैनकोष
अश्वशाला । चक्रवर्ती भरतेश के काल में ये तालाबों के पास निर्मित होती थी । इसके प्रांगण में चरने योग्य घास भी रहता था । सवारी के लिए व्यवहृत घोड़े यहाँ रहते थे । इनमें घोड़ों को स्वस्थ रखने के लिए उनकी देह पर अंगराग का लेप किया जाता था । महापुराण 29.111, 116