ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 6
From जैनकोष
मयरायदोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्त ।
पंचमहव्वयधारी आयदणं महरिसी भणियं ॥६॥
मद: राग: द्वेष: मोह: क्रोध: लोभ: च यस्य आयत्त: ।
पञ्चमहाव्रतधारी आयतनं महर्षयो भणिता: ॥६॥
आगे फिर कहते हैं -
हरिगीत
हो गये हैं नष्ट जिनके मोह राग-द्वेष मद ।
जिनवर कहें वे महाव्रतधारी ऋषि ही आयतन ॥६॥
पहिली गाथा में तो बाह्य का स्वरूप कहा था । यहाँ बाह्य-आभ्यन्तर दोनों प्रकार से संयमी हो वह ‘आयतन’ है, इसप्रकार जानना चाहिए ॥६॥