ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 9
From जैनकोष
चेइयं बंधं मोक्खं दुक्खं सुक्खं च अप्पयं तस्स ।
चेइहरं जिणमग्गे छक्कायहियंकरं भणियं ॥९॥
चैत्यं बन्धं मोक्षं दु:खं सुखं च आत्मकं तस्य ।
चैत्यगृहं जिनमार्गे षड्कायहितङ्करं भणितम् ॥९॥
आगे फिर कहते हैं -
हरिगीत
मुक्ति-बंधन और सुख-दु:ख जानते जो चैत्य वे ।
बस इसलिए षट्काय हितकर मुनी ही हैं चैत्यगृह ॥९॥
लौकिक जन चैत्यगृह का स्वरूप अन्यथा अनेकप्रकार मानते हैं, उनको सावधान किया है कि जिनसूत्र में छहकाय का हित करनेवाला ज्ञानमयी संयमी मुनि है वह ‘चैत्यगृह’ है; अन्य को चैत्यगृह कहना मानना व्यवहार है । इसप्रकार चैत्यगृह का स्वरूप कहा ॥९॥