वासना
From जैनकोष
- समाधिशतक/ टी./37 शरीरादौ शुचिस्थिरात्मीयादिज्ञानान्यविद्यास्तासामभ्यासः पुनः पुनः प्रवृत्तिस्तेन जनिताः संस्कारा वासनाः। = शरीरादि को शुचि, स्थिर और आत्मीय मानने रूप जो अविद्या अज्ञान है उसके पुनः पुनः प्रवृत्तिरूप अभ्यास से उत्पन्न संस्कार वासना कहलाते हैं।
- अनंतानुबंधी आदि कषायों का वासनाकाल –देखें वह वह नाम ।