कृष्ण
From जैनकोष
ह.पु./सर्ग/श्लोक ‘‘पूर्व के चौथे भव में अमृतरसायन नामक मांस पाचक थे (३३/१५१)। फिर तीसरे भव में तीसरे नरक में गये (३३/१५४) वहाँ से आकर यक्षलिक नामक वैश्य पुत्र हुए (३३/१५८) फिर पूर्व के भव में निर्नामिक राजपुत्र हुए (३३/१४४)। वर्तमान भव में वसुदेव के पुत्र थे (३५/१९)। नन्दगोप के घर पालन हुआ (३५/२८)। कंस के द्वारा छल से बुलाया जाने पर (३५/७५) इन्होंने मल्लयुद्ध में कंस को मार दिया (४१/१८)। रुक्मिणी का हरण किया (४२/७४) तथा अन्य अनेकों कन्याएँ विवाह कर (४४ सर्ग) अनेकों पुत्रों को जन्म दिया (४८/६९)। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का पक्ष लिया। तथा जरासंघ को मार कर (५२/८३) नवमें नारायण के रूप में प्रसिद्ध हुए (५३/१७) अन्त में भगवान् नेमिनाथ की भविष्यवाणी के अनुसार (५५/१२) द्वारका का विनाश हुआ (६१/४८-) और ये उत्तम भावनाओं का चिन्तवन करते, जरत्कुमार के तीर से मरकर नरक में गये (६२/२३)। विशेष देखें - शलाकापुरूष। भावि चौबिसी में निर्मल नाम के सोलहवें तीर्थंकर होंगे। – देखें - तीर्थंकर / ५ ।
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