गृह
From जैनकोष
(ध.१४/५,६,४१/३९/३) कट्ठियाहि बद्धकुड्डा उवरि वंसिकच्छण्णा गिहा णाम।=जिसकी भींत लकड़ियों से बनायी जाती हैं। और जिसका छप्पर बा̐स और तृण से छाया जाता है, वह गृह कहलाता हैं।
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(ध.१४/५,६,४१/३९/३) कट्ठियाहि बद्धकुड्डा उवरि वंसिकच्छण्णा गिहा णाम।=जिसकी भींत लकड़ियों से बनायी जाती हैं। और जिसका छप्पर बा̐स और तृण से छाया जाता है, वह गृह कहलाता हैं।
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