यशःकीर्ति
From जैनकोष
- नंदीसंघ बलात्कारगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें इतिहास ) आप लोहाचार्य तृतीय के शिष्य तथा यशोनंदि के गुरु थे। समय - श. सं. 153-211 (ई. 231-299)। −देखें इतिहास - 5.13।
- काष्ठासंघ की गुर्वावली के अनुसार आप क्षेमकीर्ति के गुरु थे। समय-वि. 1030 ई. 973 (प्रद्युम्नचरित्र/प्र. प्रेमी); ( लाटी संहिता/1/64-70 )−देखें इतिहास - 5.6।
- ई. श. 13 में जगत्सुंदरी प्रयोगमाला के कर्ता हुए थे। (हिं. जैन साहित्य इतिहास इ./30/कामताप्रसाद)।
- आप ललितकीर्ति के शिष्य तथा भद्रबाहुचरित के कर्ता रत्ननंदि नं. 2 के सहचर थे। आपने धर्मशर्माभ्युदय की रचना की थी। समय - वि. 1296 ई0 1239। (भद्रबाहु चरित/प्र./7/कामता) धर्मशर्माभ्युदय/प्र.। पं. पन्नालाल।
- चंदप्पह चरिउ के कर्त्ता अपभ्रंश कवि। समय - वि. श. 11 का अंत 12 का प्रारंभ। (ती./4/178)।
- काष्ठासंघ माथुर गच्छ के यशस्वी अपभ्रंश कवि। पहले गुण कीर्ति भट्टारक (वि. 1468-1486) के सहधर्मी थे, पीछे इनके शिष्य हो गये। कृतियाँ - पांडव पुराण, हरिवंश पुराण, जिणरत्ति कहा। समय - वि. 1486-1497) (ई. 1429-1440)। (ती./3/308)।
- पद्यनंदि के शिष्य क्षेमकीर्ति के गुरु। लाटीसंहिता की रचना के लिए पं. राजमंडल जी के प्रेरक। समय-वि. 1616 (ई. 1559)।
यशःकीर्ति
सर्वार्थसिद्धि/8/11/392/6 पुण्यगुणख्यापनकारणं यशःकीर्तिनाम। तत्प्रत्यनीकफलमयशःकीर्तिनाम। = पुण्य गुणों की प्रसिद्धि का कारण यशःकीर्ति नामकर्म है। इससे विपरीत फलवाला अयशःकीर्ति नामकर्म है। ( राजवार्तिक/8/11-12/579/32 ); ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/30/16 )।
धवला 6/1, 9-1, 28/66/1 जस्स कम्मस्स उदएण संताणमसंताणं वा गुणाणमुव्भावणं लोगेहि कीरदि, तस्स कम्मस्स जसकित्तिसण्णा। जस्स कम्मस्सोदएण संताणमसंताणं वा अवगुणाणं उब्भावणं जणेण कीरदे, तस्स कम्मस्स अजसैकित्तिसण्णा। = जिस कर्म के उदय से विद्यमान या अविद्यमान गुणों का उद्भावन लोगों के द्वारा किया जाता है, उस कर्म की ‘यशःकीर्ति’ यह संज्ञा है। जिस कर्म के उदय से विद्यमान अवगुणों का उद्भावन लोक द्वारा किया जाता है, उस कर्म की ‘अयशःकीर्ति’ यह संज्ञा है। ( धवला 13/5, 5, 101/356/5 )।
- अन्य संबंधित विषय
- यशःकीर्ति की बंध उदय व सत्त्व प्ररूपणाएँ व तत्संबंधी शंका - समाधानादि।−देखें वह वह नाम ।
- अयशःकीर्ति का तीर्थंकर प्रकृति के साथ बंध व तत्संबंधी शंका।−देखें प्रकृतिबंध - 6।