व्यवस्था
From जैनकोष
राजवार्तिक/5/1/29/435/2 अवतिष्ठंते पदार्था अनया आकृत्येत्यवस्था, विविधा अवस्था व्यवस्था विविधसंनिवेशो वेत्राद्यासनाकार इत्यर्थः । = जिस आकृति के द्वारा पदार्थ ठहराये जाते हैं वह अवस्था कहलाती है । विविध अवस्था व्यवस्था है । वेत्रासनादि आकार रूप विविध सन्निवेश, यह इसका अर्थ है ।
नोट–(किसी विषय में स्थिति को व्यवस्था कहते हैं और उससे विपरीत को अव्यवस्था कहते हैं ।)