संसर्ग
From जैनकोष
1. स्याद्वादमंजरी/23/284/28 संसर्गे तु भेद: प्रधानम् - अभेदोगौण इति विशेष:। = संसर्ग में भेद की प्रधानता और अभेद की गौणता होती है। ( सप्तभंगीतरंगिणी/33/21 )। 2. संसर्ग की अपेक्षा वस्तु में भेदाभेद - देखें सप्तभंगी - 5.8।
1. स्याद्वादमंजरी/23/284/28 संसर्गे तु भेद: प्रधानम् - अभेदोगौण इति विशेष:। = संसर्ग में भेद की प्रधानता और अभेद की गौणता होती है। ( सप्तभंगीतरंगिणी/33/21 )। 2. संसर्ग की अपेक्षा वस्तु में भेदाभेद - देखें सप्तभंगी - 5.8।