अनंगशरा
From जैनकोष
विदेहक्षेत्र स्थित पुंडरीक देश के चक्रधर नगर कं राजा चक्रवर्ती त्रिभुवनानंद की पुत्री । इस राजा का सामंत पुनर्वसु इसे हर ले गया था किंतु राजा के सेवकों द्वारा विरोध किये जाने पर सामंत को इसे आकाश में ही छोड़ देना पड़ा था । आकाश से यह पर्ण लघ्वी विद्या से श्वापद अटवी में नीचे आयी थी । इसने प्रासुक आहार की पारणा करते हुए तीन हजार वर्ष तक बाह्य तप किया था । पश्चात् चारों प्रकार के आहार का परित्याग कर सल्लेखना धारण की थी तथा सौ हाथ भूमि से बाहर न जाने का नियम लिया था । छ: रात्रि बीत चुकने के बाद इसका पिता इसके पास आया था । उसने इसे अजगर द्वारा खाये जाते देखकर बचाना चाहा था किंतु अजगर की पीड़ा का ध्यान रखते हुए इसने पिता को अजगर से अपने को मुक्त कराने की अनुमति नहीं दी थी और इस उपसर्ग को सहन करते हुए किये गये तप के प्रभाव से मरकर यह ईशान स्वर्ग में देव हुई तथा वहाँ से चयकर राजा द्रौणमेघ की विशल्या नाम की पुत्री हुई थी । पद्मपुराण 64.50-55, 82-92, 96-99