अहिदेव
From जैनकोष
कौशांबी नगरी के निवासी वणिक् बृहद्घन और कुरुविंदा का ज्येष्ठ पुत्र, महादेव का सहोदर । इन दोनों भाइयों ने पिता के मरने पर अपनी संपत्ति बेचकर एक रत्न खरीद लिया था । यह रत्न जिस भाई के पास रहता वह दूसरे भाई को मारने की इच्छा करने लगता था, अत: परस्पर उत्पन्न खोटे विचार एक दूसरे को बताकर और रत्न माँ को देकर दोनों विरक्त हो गये थे । रत्न पाकर माँ के मन में भी उन पुत्रों को विष देकर मारने के भाव उत्पन्न हुए थे इसलिए वह भी इस रत्न को यमुना मे फेंककर विरक्त हो गयी थी । महापुराण 55-60-64