गृहीशिता
From जैनकोष
गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में बीसवीं तथा दीक्षान्वय की अड़तालीस क्रियाओं में पंद्रहवीं क्रिया । इस क्रिया में शास्त्रज्ञान और चारित्र से संपन्न व्यक्ति गृहस्थाचार्य बनता है और स्वकल्याण करते हुए सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह करता है । महापुराण 38.57, 144-147, 39.73-74