क्षेत्रप्रमाण के भेद
From जैनकोष
रा.वा./३/३८/७/२०८/३० क्षेत्रप्रमाणं द्विविधं—अवगाहक्षेत्रं विभागनिष्पन्नक्षेत्रं चेति। तत्रावगाहक्षेत्रमनेकविधम्-एकद्वित्रिचतु:संख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तप्रदेशपुद्गलद्रव्यावगाह्येकाद्यसंख्येयाकाशप्रदेशभेदात्। विभागनिष्पन्नक्षेत्रं चानेकविधम्-असंख्येयाकाशश्रेणय: क्षेत्रप्रमाणाङ्गुलस्यैकोऽसंख्येयभाग:, असंख्येया: क्षेत्रप्रमाणाङ्गुलासंख्येयभागा: क्षेत्रप्रमाणाङ्गुलमेकं भवति। पादवितस्यादि पूर्ववद्वेदितव्यम् ।=क्षेत्र प्रमाण दो प्रकार का है—अवगाह क्षेत्र और विभाग निष्पन्न क्षेत्र। अवगाह क्षेत्र एक, दो, तीन, चार, संख्येय, असंख्येय और अनन्त प्रदेशवाले पुद्गलद्रव्य को अवगाह देने वाले आकाश प्रदेशों की दृष्टि से अनेक प्रकार का है। विभाग निष्पन्नक्षेत्र भी अनेक प्रकार का है—असंख्यात आकाशश्रेणी; प्रमाणाङ्गुलका एक असंख्यातभाग, असंख्यात क्षेत्र प्रमाणांगुल के असंख्यात भाग; एकक्षेत्र प्रमाणाङ्गुल; पाद, वितस्त (वालिस्त) आदि पहले की तरह जानना चाहिए। विशेष देखें - गणित / I / १ ।
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