द्वीपसागरप्रज्ञप्ति
From जैनकोष
दृष्टिवाद अंग के परिकर्म नामक भेद मैं कथित पाँच प्रज्ञप्तियों में चतुर्थ प्रज्ञप्ति । इसमें द्वीप और सागरों का बावन लाख छत्तीस हजार पदों में वर्णन है । हरिवंशपुराण 10.61-62, 66
दृष्टिवाद अंग के परिकर्म नामक भेद मैं कथित पाँच प्रज्ञप्तियों में चतुर्थ प्रज्ञप्ति । इसमें द्वीप और सागरों का बावन लाख छत्तीस हजार पदों में वर्णन है । हरिवंशपुराण 10.61-62, 66