धर्मकथा
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
देखें कथा ।
पुराणकोष से
धर्म से संबंध रखने वाली कथा । यह चार प्रकार की होती है― आक्षेपिणी, निक्षेपिणी, संवेदिनी और निर्वेदिनी, । इसके सात अंग होते हैं― द्रव्य, क्षेत्र, तीर्थ, काल, भाव, महाफल और प्रकृत । सातवें प्रकृत अंग के द्वारा शेष छ: अंगों का इसमें प्रतिपादन हो जाता है । प्रकृत अंग में निर्ग्रंथ संतों और त्रेसठशलाका महापुरुषों के चरितों, भवांतरों आदि का और लौकिक तथा आध्यात्मिक वैभव का वर्णन समाहित होता है । महापुराण 1.107, 122, 135-136, 62.11-14, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.77-81