पात्रदत्ति
From जैनकोष
मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका आदि को पड़गाहकर सत्कारपूर्वक दान-विधि के अनुसार दान देना । ऐसे दान से कीर्ति निर्मल होती है और स्वर्ग तथा देवकुरु भोगभूमि के सुख मिलते हैं । महापुराण 3.208, 9.112, 38.35-37, पद्मपुराण 53.161-164, 123. 105, वीरवर्द्धमान चरित्र 13. 2-30