क्षत्रिय
From जैनकोष
श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार (देखें - इतिहास ) आप भद्रबाहु प्रथम (श्रुतकेवली) के पश्चात् तृतीय ११ अंग व चौदह पूर्वधारी हुए हैं। अपरनाम कृतिकार्य था। समय–वी॰नि॰ १९१-२०८; ई॰पू॰ ३३६-३१९ पं॰ कैलाशचन्द जी की अपेक्षा वी॰नि॰ २५१-२६८ ( देखें - इतिहास / ४ / ४ )
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