भावनाविधि
From जैनकोष
एक व्रत । इसमें अहिंसा आदि पाँचों व्रतों की पच्चीस भावनाओं को लक्ष्य कर दस दशमी, पाँच पंचमी, आठ अष्टमी और दो प्रतिपदा के कुल पच्चीस उपवास तथा एक-एक उपवास के बाद एक-एक पारणा की जाती है । कुछ भावनाएँ निम्न प्रकार हैं—सम्यक्त्वभावना, विनयभावना, ज्ञानभावना, शीलभावना, सत्यभावना, ध्यानभावना, शुक्लध्यानभावना, संक्लेशनिरोधभावना, इच्छानिरोधभावना, संवरभावना, प्रशस्तयोगभावना, संवेगभावना, करुणाभावना, उद्वेगभावना, भोगनिवेदभावना, संसारनिर्वेदभावना, भुक्तिवैराग्यभावना, मोक्षभावना, मैत्री-भावना, उपेक्षाभावना और प्रमोदभावना । हरिवंशपुराण 34.112-116