ग्रन्थ:लिंगपाहुड़ गाथा 10
From जैनकोष
चोराण १लाउराण च जुद्धं विवादं च तिव्वकम्मेहिं ।
जंतेण दिव्वमाणो गच्छदि लिंगी णरयवासं ॥१०॥
चौराणां लापराणां च युद्धं विवादं च तीव्रकर्मभि: ।
यन्त्रेण दीव्यमान: गच्छति लिङ्गी नरकवासं ॥१०॥
आगे फिर कहते हैं -
अर्थ - जो लिंगी ऐसे प्रवर्तता है वह नरकवास को प्राप्त होता है जो चोरों के और लापर अर्थात् झूठ बोलनेवालों के युद्ध और विवाद कराता है और तीव्रकर्म जिनमें बहुत पाप उत्पन्न हो ऐसे तीव्र कषायों के कार्यों से तथा यंत्र अर्थात् चौपड़, शतरंज, पासा, हिंदोला आदि से क्रीड़ा करता रहता है, वह नरक जाता है । यहाँ ‘लाउराणं’ का पाठान्तर ऐसा भी है ‘राउलाणं’ इसका अर्थ - रावल अर्थात् राजकार्य करनेवालों के युद्ध विवाद कराता है, ऐसे जानना ।
भावार्थ - भावार्थ - लिंग धारण करके ऐसे कार्य करे वह तो नरक ही पाता है, इसमें संशय नहींहै ॥१०॥