ग्रन्थ:शीलपाहुड़ गाथा 21
From जैनकोष
जह विसयलुद्ध विसदो तह थावरजंगमाण घोराणं ।
सव्वेसिं पि विणासदि विसयविसं दारुणं होई ॥२१॥
यथा विषयलुब्ध: विषद: तथा स्थावरजङ्गमान् घोरान् ।
सर्वान् अपि विनाशयति विषयविषं दारुणं भवति ॥२१॥
आगे कहते हैं कि विषयरूप विष महा प्रबल है -
अर्थ - जैसे विषय सेवनरूपी विष विषयलुब्ध जीवों को विष देनेवाला है वैसे ही घोर तीव्र स्थावर जंगम सब ही विष प्राणियों का विनाश करते हैं तथापि इन सब विषों में विषयों का विष उत्कृष्ट है, तीव्र है ।
भावार्थ - जैसे हस्ती, मीन, भ्रमर, पतंग आदि जीव विषयों में लुब्ध होकर विषयों के वश हो नष्ट होते हैं, वैसे ही स्थावर का विष मोहरा सोमल आदिक और जंगम का विष सर्प घोहरा आदिक का विष इन विषों से भी प्राणी मारे जाते हैं, परन्तु सब विषों में विषयों का विष अति ही तीव्र है ॥२१॥