ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 6
From जैनकोष
मलरहिओ कलचत्ते अणिंदिओ केवलो विसुद्धप्पा ।
परमेट्ठी परमजिणो सिवकरो सासओ सिद्धो ॥६॥
मलरहित: कलत्यक्त: अनिन्द्रिय: केवल: विशुद्धात्मा ।
परमेष्ठी परमजिन: शिवङ्कर: शाश्वत: सिद्ध: ॥६॥
आगे उस परमात्मा का विशेषण द्वारा स्वरूप कहते हैं -
अर्थ - परमात्मा ऐसा है - मलरहित है - द्रव्यकर्म भावकर्मरूप मल से रहित है, कलत्यक्त (शरीर रहित) है, अनिंद्रिय (इन्द्रिय रहित) है अथवा अनिंदित अर्थात् किसीप्रकार निंदायुक्त नहीं है, सबप्रकार से प्रशंसा योग्य है, केवल (केवलज्ञानमयी) है,विशुद्धात्मा, जिसकी आत्मा का स्वरूप विशेषरूप से शुद्ध है, ज्ञान में ज्ञेयों के आकार झलकते हैं तो भी उनरूप नहीं होता है और न उनसे राग-द्वेष है, परमेष्ठी है - परमपद में स्थित है, परमजिन है, सब कर्मों को जीत लिये हैं, शिवंकर है-भव्यजीवों को परम मंगल तथा मोक्ष को करता है, शाश्वता (अविनाशी) है, सिद्ध है, अपने स्वरूप की सिद्धि करके निर्वाणपद को प्राप्त हुआ है ।
भावार्थ - ऐसा परमात्मा है, जो इसप्रकार से परमात्मा का ध्यान करता है वह ऐसा ही हो जाता है ॥६॥