वर्णीजी-प्रवचन:द्रव्य संग्रह - गाथा 15
From जैनकोष
अज्जीवो पुणणेओ पुग्गल धम्मो अधम्म आयासं ।
कालो पुग्गल मुत्तो रूवादिगुणो अमुत्ति सेसादु ।।15।।
अन्वय―पुणापुग्गल धम्मो अधम्म आयासं कालो अज्जीवोणेवो पुग्गल रुवादिगुणो मुत्तो दुसेसा अमुत्ति ।
अर्थ―और फिर पुद᳭गल, धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्य―इन पाँचों को अजीव जानना चाहिये । उनमें से पुद्गलद्रव्य तो रूपादि गुण वाला है, इसलिये मूर्तिक है और शेष के धर्म, अधर्म, आकाश और काल―ये चार द्रव्य अमूर्तिक हैं ।
प्रश्न 1―परम उपादेय शुद्ध जीवद्रव्य के वर्णन के बाद अजीवों के वर्णन का क्या प्रयोजन है?
उत्तर―जीवतत्त्व उपादेय है और अजीवतत्त्व हेय है । हेयतत्त्व को जाने बिना उसे कैसे छोड़ा जाये और अजीवतत्त्व छोड़े बिना जीवतत्त्व कैसे उपादेय बनेगा? इस कारण अजीवतत्त्व का वर्णन किया ।
प्रश्न 2―तब तो अजीवतत्त्व का पहिले वर्णन करना था?
उत्तर―जीवतत्त्व प्रधान है, इसलिये जीवतत्त्व का पहिले वर्णन किया अथवा अजीव उसे कहते हैं, जो जीव नहीं । सो अजीव का स्वरूप जानने के लिए जीव के स्वरूप का वर्णन पहिले आवश्यक ही है ।
प्रश्न 3―अजीव किसे कहते हैं?
उत्तर―जिसमें जीवत्व अर्थात् चेतना न हो उसे अजीव कहते हैं । इन अजीव द्रव्यों में किसी भी प्रकार की चेतना नहीं है ।
प्रश्न 4―चेतना कितने प्रकार की होती है?
उत्तर―चेतनाशक्ति की अपेक्षा तो एक ही प्रकार की है, विकास की अपेक्षा तीन प्रकार की है―(1) कर्मफलचेतना, (2) कर्मचेतना और (3) ज्ञानचेतना ।
प्रश्न 5―कर्मफलचेतना किसे कहते हैं?
उत्तर―ज्ञान के अतिरिक्त अन्य भावों में व पदार्थों में मैं इसे भोगता हूँ, ऐसा संवेदन करना कर्मफलचेतना है । इसमें अव्यक्त सुखदुःख का अनुभव भी अंतर्निहित है ।
प्रश्न 6―कर्मफलचेतना किन जीवों के होती है?
उत्तर―कर्मफलचेतना एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, असंज्ञीपंचेंद्रिय में होती है और संज्ञीपंचेंद्रिय में तीसरे गुणस्थान तक के संज्ञीपंचेंद्रिय जीवों में होती है । इसके आगे 12वें गुणस्थान तक गौणरूप से माना है ।
प्रश्न 7―कर्मचेतना किसे कहते है?
उत्तर―ज्ञान के अतिरिक्त अन्य भावों में व पदार्थों मैं मैं इसे करता हूँ, ऐसा संवेदन करना कर्मचेतना है।
प्रश्न 8―कर्मचेतना किन जीवों के होती है?
उत्तर―कर्मचेतना द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, असंज्ञी पंचेंद्रिय में व तीसरे गुणस्थान तक संज्ञी पंचेंद्रियों में कर्मचेतना होती है । एकेंद्रिय जीवों में क्रिया की मुख्यता न होने से कर्मचेतना गौणरूप से कहीं है चौथे गुणस्थान से 12वें गुणस्थान तक के जीवों में अंशमात्र भी विपरीत श्रद्धान न होने से मात्र रागद्वेष परिणति के कारण कर्मचेतना गौणरूप से मानी है ।
प्रश्न 9―ज्ञानचेतना किसे कहते हैं?
उत्तर―अपने को शुद्धज्ञानमात्र संचेतन करना ज्ञानचेतना है ।
प्रश्न 10―ज्ञानचेतना किनके होती है?
उत्तर―ज्ञानचेतना चौथे गुणस्थान से लेकर 14वें गुणस्थान तक के सब जीवों में और सिद्धों में होती है । 13वें, 14वें गुणस्थानवर्ती जीवों के व सिद्धों के ज्ञानोपयोग का पूर्ण शुद्ध परिणमन होने से मुख्यरूप से ज्ञानचेतना है ।
प्रश्न 11―पुद्गल किसे कहते हैं?
उत्तर―जिसमें पूरन और गलन का स्वभाव हो उसे पुद्गल कहते हैं । अनेक परमाणुवों का मिलकर स्कंध हो जाना और बिखरकर खंड-खंड हो जाना वह बात पुद्गल में ही पाई जाती है ।
प्रश्न 12―एक पुद᳭गल पदार्थ बिखर क्यों जाता है?
उत्तर―जो स्कंध है वह एक पुद्गल पदार्थ नहीं है । उसमें जो एक-एक करके अनेक परमाणु हैं जिनका कि दूसरा खंड कभी नहीं हो सकता, ऐसे अखंड और सूक्ष्म हैं वे एक-एक पुद᳭गल द्रव्य हैं ।
प्रश्न 13―स्कंध क्या द्रव्य नहीं है?
उत्तर―स्कंध समानजातीय द्रव्यपर्याय है अर्थात् पुद्गल द्रव्यजाति के ही अनेक परमाणुवों का व्यंजनपर्याय है । निश्चयनय से वहाँ भी जितने परमाणु हैं उतने ही उनके अपने-अपने में परिणमन हैं ।
प्रश्न 14―पुद᳭गल कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर―संक्षेप से तो पुद᳭गल 2 प्रकार के होते हैं―(1) अणु याने परमाणु और (2) स्कंध ।
प्रश्न 15―विस्तार से पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं?
उत्तर―न संक्षेप न अतिविस्तार से पुद्गल 23 प्रकार के कहे गये हैं―(1) अणु, (2) संख्याताणुवर्गणा, (3) असंख्याताणुवर्गणा, (4) अनंताणुवर्गणा, (5) ग्राह्याहारवर्गणा, (6) ग्राह्यभाषावर्गणा, (7) ग्राह्यमनोवर्गणा, (8) ग्राहतैजसवर्गणा, (9) कार्माणवर्गणा, (10) अग्राह्याहारवर्गणा, (11) अग्राह्यभाषावर्गणा, (12) अग्राह्यमनोवर्गणा, (13) अग्राह्यतैजसवर्गणा, (14) ध्रुववर्गणा, (15) सांतरनिरंतरवर्गणा, (16) सांतरनिरंतरशूंयवर्गणा, (17) प्रत्येकशरीरवर्गणा, (18) ध्रुवशून्यवर्गणा, (19) वादरनिगोदवर्गणा, (20) वादरनिगोदशून्यवर्गणा, (21) सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, (22) नभोवर्गणा, (23) महास्कंधवर्गणा ।
प्रश्न 16―इन 23 प्रकार के पुद्गलों का संक्षिप्त विभाग क्या है?
उत्तर―इनमें अणु तो शुद्ध पुद्गल द्रव्य है शेष के 22 स्कंध हैं । उन बाईस स्कंधों में
संख्याताणुवर्गणा असंख्याताणुवर्गणा व अनंताणुवर्गणायें 3 सामान्य हैं, संख्या की अपेक्षा से हैं । ग्राह्याहारवर्गणा, ग्राह्यभाषावर्गणा, ग्राह्यमनोवर्गणा, ग्राह्यतैजसवर्गणा और कार्माणवर्गणा ये 5 जीव द्वारा ग्राह्य हैं? शेष के 14 को उनके नाम पर से उनका प्रयोजन जान लेना चाहिये ।
प्रश्न 17―धर्मद्रव्य का क्या स्वरूप है?
उत्तर―धर्मद्रव्य आदि शेष 4 अजीव द्रव्यों का स्वरूप अलग से गाथावों में आगे कहा जावेगा इस कारण वहाँ ही इस सबका विवरण होगा ।
प्रश्न 18―इन सब द्रव्यों का आकार क्या है?
उत्तर―इन द्रव्यों का आकार अपने-अपने प्रदेशोंरूप है । मूर्त आकार केवल पुद्गलद्रव्य का ही है ।
प्रश्न 19―पुद्गलद्रव्य मूर्त क्यों है?
उत्तर―पुद्गल में रूप रस, गंध और स्पर्श ये चार गुण और इनके परिणमन पाये जाते हैं, इसलिये पुद्गलद्रव्य मूर्त है । रूप, रस, गंध और स्पर्श इन चारों के एकत्व को मूर्ति कहते हैं ।
प्रश्न 20―धर्म, अधर्म, आकाश और काल अमूर्त क्यों हैं?
उत्तर―धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये चारों द्रव्य रूप, रस, गंध और स्पर्श से रहित हैं अत: ये अमूर्त हैं ।
प्रश्न 21―परमाणु का स्कंध से बंध क्यों हो जाता है?
उत्तर―एक परमाणु का स्कंध से बंध नहीं होता किंतु स्कंध का स्कंध के साथ विशिष्ट संबंध हो जाता है ।
प्रश्न 22―परमाणु का परमाणु से बंध क्यों हो जाता है?
उत्तर―परमाणु का परमाणु के साथ स्निग्धरूक्षगुण के परिणमन के कारण बंध हो जाता है । दो अधिक अविभाग प्रतिच्छेद (डिग्री) वाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणु के साथ उससे 2 कम अविभाग प्रतिच्छेद वाले स्निग्ध या रूक्ष किसी भी परमाणु का बंध हो जाता है । किंतु एक अविभाग प्रतिच्छेद वाले स्निग्ध या रूक्ष किसी भी परमाणु का बंध नहीं होता । जैसे कि जघन्य राग वाले मुनि के राग का बंध नहीं होता ।
प्रश्न 23―परमाणु शुद्ध होते या अशुद्ध?
उत्तर―परमाणु केवल एक द्रव्य रह गया इस अपेक्षा से तो परमाण शुद्ध है । जिस परमाणु का बंधन हो ऐसी शुद्धता की अपेक्षा जघन्य अर्थात् एक अविभाग प्रतिच्छेद मात्र स्निग्ध, रूक्षपरमाणु शुद्ध है अनेक अविभाग प्रतिच्छेद वाला स्निग्ध, रूक्षपरमाणु अशुद्ध है ।
प्रश्न 24―जघन्य गुण वाले परमाणु का फिर कभी बंध होता है या नहीं?
उत्तर―जघन्यगुण वाले परमाणु में जब स्वयं अविभागप्रतिच्छेद की वृद्धि हो जाती है तब बंध योग्य होता है ।
प्रश्न 25―दो परमाणुवों का बंध होने पर वे किसरूप परिणम जाते हैं?
उत्तर―कम गुण वाला परमाणु अधिक गुण वाले परमाणु की तरह परिणम जाता है । जैसे 15 डिग्री के रूक्षपरमाणु का 17 डिग्री के स्निग्धपरमाणु के साथ बंध हुआ दो रूक्षपरमाणु भी स्निग्धपरमाणु के बंध का निमित्त पाकर रूक्षपरिणमन का व्यय करता हुआ स्निग्धगुण रूप परिणम जाता है ।
प्रश्न 26―इस वर्णन से हमें क्या ध्यान करना चाहिये?
उत्तर―जैसे जघन्य गुण वाला स्निग्धत्व या रूक्षत्वपरमाणु के बंध के लिये समर्थ नहीं होता उसी प्रकार जघन्य गुण वाला राग जीव के बंध के लिये समर्थ नहीं होता और उस राग के नष्ट होते ही अनंतचतुष्टय की शुद्धता हो जाती है । यह सब निज शुद्धात्म भावना का फल है । अत: रागरहित निजशुद्ध चैतन्यस्वभाव की उपासना करना चाहिये ।
अब पुद्गलद्रव्य की द्रव्यपर्यायों का वर्णन करते हैं―