वर्णीजी-प्रवचन:द्रव्य संग्रह - गाथा 21
From जैनकोष
दव्वपरिवट्टरूवो जो सो कालो हवेइ ववहारो ।
परिणामादीलक्खो वट्टणलक्खो य परमट्ठो ।।21।।
अन्वय―जो परिणामादीलक्खो दव्व परिवट्टरूवो सो ववहारो कालो हवेइ य वट्टणलक्खो परमट्ठो ।
अर्थ―जो परिणाम, आदि द्वारा जाना गया व द्रव्यों के परिवर्तन से जिसकी मुद्रा है वह तो व्यवहार काल है और जिसका वर्तना ही लक्षण है वह निश्चयकाल है ।
प्रश्न 1―व्यवहारकाल किसे कहते हैं?
उत्तर―व्यवहार में घंटा, दिन आदि का जो व्यवहार किया जाता है उसे व्यवहारकाल कहते हैं ।
प्रश्न 2―व्यवहारकाल के कितने भेद हैं?
उत्तर―समय, आवली, सैकिंड, मिनट, घंटा, दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, वर्ष आदि अनेक भेद हैं ।
प्रश्न 3―परिणाम आदि शब्द से क्या-क्या ग्रहण करना चाहिये?
उत्तर―परिणाम, क्रिया, परत्व अपरत्व का ग्रहण करना चाहिये । व्यवहारकाल इन लक्षणों से जाना जाता है ।
प्रश्न 4―परिणाम किसे कहते हैं?
उत्तर―द्रव्यों के परिणमनों को परिणाम कहते हैं । द्रव्य एक अवस्था से दूसरी अवस्था धारण करता है । इन परिणमनों से व्यवहारकाल का निश्चय होता है ।
प्रश्न 5―क्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर―एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र पर पहुंचने तथा दूध का खलबलाना आदि हलन चलन को क्रिया कहते हैं । इन दो स्वरूपों के कारण क्रिया दो प्रकार की हो जाती है―(1) देशांतरचलनरूप, (2) परिस्पंदरूप ।
प्रश्न 6―परत्व किसे कहते हैं?
उत्तर―जेठेपन या प्राचीनता को परत्व कहते हैं । जैसे अमुक बालक 2 वर्ष जेठा है आदि ।
प्रश्न 7―अपरत्व किसे कहते हैं?
उत्तर―लहुरेपन या अर्वाचीनता याने नवीनता को अपरत्व कहते । जैसे अमुक बालक 2 वर्ष लहुरा है याने छोटा है आदि ।
प्रश्न 8―वर्तना किसे कहते हैं?
उत्तर―पदार्थ के परिणमन में सहकारी कारण होने को वर्तना कहते हैं ।
प्रश्न 9-―निश्चयकाल किसे कहते हैं?
उत्तर―समय, मिनट आदि जिसकी पर्यायें होती हैं उस द्रव्य को निश्चयकाल कहते हैं । यह काल द्रव्य समस्त पदार्थों के परिणमन का सहकारी निमित्त कारण है, यही वर्तना काल द्रव्य का लक्षण है ।
प्रश्न 10―क्या वर्तना व्यवहारकाल का लक्षण नहीं है?
उत्तर―वर्तना व्यवहारकाल का भी लक्षण है, उस वर्तना का अर्थ है एक समय मात्र का परिणमना । इससे समय नाम का अनुपचरित व्यवहारकाल जाना जाता है ।
प्रश्न 11―समय का कितना परिमाण है?
उत्तर―एक परमाणु मंद गति से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर पहुंचे उसमें जो काल व्यतीत होता है वह समय है । अथवा नेत्र की पलक गिरने में जितना काल लगता है वह असंख्यात आवली प्रमाण है और एक आवली में असंख्यात समय होते हैं सो आवली के असंख्यातवें भाग में से 1 भाग को समय कहते हैं ।
प्रश्न 12―पदार्थों का परिणमन यदि कालद्रव्य के आधीन है तो परिणमन पदार्थों का स्वभाव न ठहरेगा?
उत्तर―पदार्थ का परिणमना तो पदार्थ का स्वभाव ही है इसी को द्रव्यत्व स्वभाव कहते हैं । कालद्रव्य तो परिणमते हुए पदार्थों के परिणमन में मात्र निमित्त कारण है ।
प्रश्न 13―यदि परमाणु को एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर पहुंचने में एक समय हो जाता है तब परमाणु को 14 राजूप्रमाण असंख्यात प्रदेशों के उल्लंघन में असंख्यात समय लगते होगे?
उत्तर―तीव्र गति से गमन करने वाला परमाणु एक समय में 14 राजू गमन करता है । मंद गति से गमन में एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर पहुंचना भी एक समय में होता है । जैसे कोई पुरुष मंदी चाल से 200 मील 20 दिन में जाता है वही विद्या सिद्ध होने पर तीव्र गति से 200 मील 1 दिन में भी जा सकता है तो यह टाइम कहीं 20 दिन का थोड़े ही कहलावेगा इसी प्रकार परमाणु मंद गति एक प्रदेश तक 1 समय में जाता है और तीव्र गति से असंख्यात प्रदेश सीधा (14 राजू) एक समय में जाता है ।
प्रश्न 14―समय तो सत्य है किंतु निश्चयकालद्रव्य कुछ प्रतीत नहीं होता?
उत्तर―यदि समय ही समय मानते तो समय तो ध्रुव है नहीं, वह उत्पन्न होता और दूसरे क्षण नष्ट होता अत: समय पर्याय सिद्ध हुई । अब यह समय नामक पर्याय किस द्रव्य की है । जिस द्रव्य की है उसी का नाम कालद्रव्य कहा गया है ।
प्रश्न 15―कालद्रव्य तो अन्य सब पदार्थों की परिणति का निमित्त कारण है―कालद्रव्य की परिणति का कौन निमित्त कारण है?
उत्तर―कालद्रव्य की परिणति का निमित्त कारण वही कालद्रव्य है जैसे कि सब पदार्थों के अवगाह का कारण आकाश है और आकाश के अवगाह का कारण आकाश स्वयं है ।
प्रश्न 16―समय का उपादानकारण परमाणु का गमन है काल नहीं?
उत्तर―समय का उपादानकारण यदि परमाणु है तो परमाणु के रूप, रसादि समय में होना चाहिये सो तो है नहीं । इस कारण समय का उपादानकारण परमाणु नहीं है ।
प्रश्न 17―मिनट का उपादानकारण तो घड़ी के मिनट वाले कांटे का एक चक्कर लगाना तो प्रत्यक्ष दिखता?
उत्तर―घड़ी का कांटा मिनट का कारण नहीं है, कांटे की वह क्रिया तो उतने समय का संकेत करने वाली है । यदि कांटे की पर्याय मिनट होता तो मिनट में भी कांटे का रूप, रस सादि पाया जाना चाहिये, क्योंकि कार्य उपादानकारण के सदृश देखा जाता है ।
प्रश्न 18―समयादि व्यवहारकाल के निमित्तकारण क्या-क्या हो सकते हैं?
उत्तर―परमाणु का मंद गति से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर जाना, नेत्र की पलक उघाड़ना छिद्र वाले बर्तन से जल या रेत का गिरना, सूर्य का उदय, अस्त होना आदि अनेक पुद᳭गलों के परिणमन व्यवहारकाल के निमित्त कारण है ।
प्रश्न 19―उक्त पुद्गल परिणमन क्या कारक कारण है या ज्ञापक कारण है?
उत्तर―उक्त पुद्गल परिणमन समयादि के ज्ञापक कारण हैं, क्योंकि वास्तव में तो कालपरिणमन में कालद्रव्य ही उपादानकारण है और कालद्रव्य ही निमित्त कारण है ।
प्रश्न 20―इस तरह तो जीवादि के परिणमन में कालद्रव्य भी ज्ञापक कारण होना चाहिये?
उत्तर―काल परिणमन सदृश है तथा कालद्रव्य के ज्ञापकता की कोई व्याप्ति भी नहीं बनती, अत: वह जीवादिपरिणमन का ज्ञापक कारण नहीं बन सकता ।
प्रश्न 21―इस गाथा से हमें क्या ध्येय स्वीकार करना चाहिये?
उत्तर―यद्यपि काललब्धि को निमित्त पाकर भी निजशुद्धात्मा के सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान आचरणरूप मोक्षमार्ग पाता है, किंतु वहाँ आत्मा ही उपादानकारण और उपादेय मानना चाहिये, काल बाह्यतत्त्व होने से हेय ही है ।
इस प्रकार कालद्रव्य का स्वरूप बताकर अब उनकी संख्या व स्थान बताते हैं―