वर्णीजी-प्रवचन:परमात्मप्रकाश - गाथा 62
From जैनकोष
ते पुण जीवहें जोइया अट्ठवि कम्म हवंति ।
जेहिंजि झंपिय जीव णवि अप्पसहाउ लहंति ।।62।।
हे योगी ! वे कर्म 8 हैं, जो जीव के स्वभाव को ढक देते हैं । जिसके निमित्त से यह जीव आत्मा के स्वभाव को नहीं प्राप्त कर पाता । भैया ! ठंड के दिनों में तालाब में नहाने के लिए 5-7 बड़े-बड़े बालक गये । तालाब के किनारे बैठे, कपड़े उतारे, लंगोटे पहिन ली । जाड़े से ठिठुर कर तालाब के किनारे बैठे हैं । तालाब में कूदने की हिम्मत नहीं पड़ रही है । अगर हिम्मत करें और कूद लगा दें तो सारी ठंड भाग जायेगी । तालाबों के पानी में सर्दी नहीं होती है; किनारे सर्दी होती है । ठंड के मारे किनारे बैठे-बैठे जब बहुत बड़ा विलंब हो जाता है, तब हिम्मत करके कूद पड़ते हैं और वहाँ सारी ठंड खत्म हो जाती है । अरे ! पास में ही तो तालाब है, अपने आपमें ही यह ज्ञान और आनंद का समुद्र है, इसके किनारे बैठे ठिठुर रहे हैं । बाहर में दृष्टि है इससे संताप को नहीं मिटा पाते । कुछ हिम्मत करके सबको भूलकर एक कूद तो ले लो । अपने इस ज्ञानानंद, सागर में कूद लेने से सर्व संताप शांत हो जायेंगे ।
ये चेतन-अचेतन पदार्थ कुछ नहीं हैं अपन इनका क्या संकोच करें? जिनसे अपना मतलब सिद्ध नहीं हो सकता उनका क्या तो संकोच करें और क्या ऐहसान माने? किसी भी बाह्य पदार्थ से मेरे आत्मा की कुछ हानि नहीं हो सकती । गृहस्थावस्था में धर्म का और कर्म का समन्वय करना कुछ कठिन है, साधु अवस्था में तो कठिन नहीं है क्योंकि एक मार्ग खुला हुआ है । वहाँ किसी परवस्तु का उत्तरदायित्व नहीं है ।
एक गृहस्थ ने किसी से कुछ वायदा कर रखा हो, पश्चात् उसे हो जाये वैराग्य और छोड़कर बन जाये साधु और उससे कहें क्यों जी ! तुमने तो कल के लिए परसों के लिए इतने देने का, लेने का, या किसी कार्य को करने को वायदा किया था और आप उसको भूल गये और यहाँ विराज गये । एक और मोटी बात ले लो । विवाह के समय में 7-7 वचन होते है । पुरुष स्त्री से कहता है कि मैं तुम्हें जीवन भर निभाऊंगा, तुम्हारी रक्षा करूंगा और विवाह के 5 दिन बाद ही उसे हो जाये वैराग्य हो गया साधु? तो क्या लोग यह कहेंगे कि तुम बड़े झूठे हो? तुमने तो अभी 5 दिन पहले कहा था कि हम स्त्री को जीवनभर निभायेंगे । क्या उत्तर है? वह मोह में कही हुई बात है । उसका निभाव मोह तक ही है । मोह में की हुई बात का निभाव निर्मोह अवस्था में नहीं किया जा सकता है । जैसे इस जन्म में किया हुआ वायदा मरकर क्या दूसरे जन्म में भी निभाना पड़ेगा? कोई निभाता है क्या? नहीं, क्योंकि इसका दूसरा जन्म हो गया । इसी तरह मोह में की हुई बात साधु बनने पर, निर्मोह अवस्था होने पर नहीं निभाई जाती; कारण कि उसका वह दूसरा जन्म हो गया है।
भैया ! ये सब मोह के स्वप्न हैं और मोह में ही ये ठीक लगते हैं । सही जंचते हैं । यह मोह क्यों हुआ? तो उसके निमित्तभूत कारण कर्म हैं । ये कर्म 8 होते हैं । जिन कर्मों से बंधा हुआ यह जीव तिरस्कृत हो सम्यक्त्व आदि 8 अपने गुणों को नहीं प्राप्त कर सकता है । वे 8 गुण कौन हैं?