वर्णीजी-प्रवचन:परमात्मप्रकाश - गाथा 79
From जैनकोष
जिउ मिच्छत्तें परिणमिउ विवरिउ तच्चु मुणेइ ।
कम्मविणिम्मिय भावडा ते अप्पाणु भणेइ ।।79।।
यह जीव मिथ्यात्व से परिणमता हुआ विपरीत तत्त्व को जानता है । मिथ्यात्व क्या चीज है? जैसा नहीं है वैसा आशय बनाना सो मिथ्यात्व है । यह मैं आत्मा स्वयं कैसा हूं? केवल चैतन्यस्वरूप हूँ । इसमें जो विभाव की तरंगे उत्पन्न होती हैं वे आत्मा के स्वरूप के कारण नहीं होती हैं । तो जैसा यह मैं शुद्ध आत्मतत्त्व हूँ उसकी रुचि और अनुभव तो नहीं हो, किंतु विपरीत तत्त्व में अशुद्ध पर्यायों में रुचि हो तो उसे मिथ्यात्व कहते हैं । जो मिथ्यात्व की वासना से वासित है वह जीव परमात्मादिक तत्त्वों को यथावत् नहीं जानता है, वस्तु के स्वरूप को भी नहीं जानता है । बिल्कुल विपरीत उन्हें उनके स्वरूप को उल्टा मानने की परिणति होती है । इस मिथ्यात्वभाव की परिणति से यह जीव लगा हुआ है । फिर क्या करता है कि कर्म विनिर्मित भावों रूप इस आत्मा को मानता है ।
विशिष्ट भेदविज्ञान का अभाव होने से यह जीव शरीर के धर्म को अपना धर्म मानता है । गौरवर्ण हो तो यह अपने को गौरवर्ण वाला मानता है । मोटा हुआ तो यह अपने को मानता है कि मैं मोटा हूँ । कृष्ण हुआ तो यह अपने को मानता है कि मैं कृष्ण हूँ । तो कर्मविनिर्मित भावों को अपना स्वरूप जानता है, यह उसका अर्थ निकला । यह संसारीजीव अगृहीत मिथ्यात्व से प्रकृत्या अनादि से फंसा हुआ है । मिथ्यात्व दो प्रकार के होते हैं―एक गृहीतमिथ्यात्व और दूसरा अनुगृहीतमिथ्यात्व । जो बिना सिखाये-बताये मिथ्यात्व भावों के रूप परिणमें उसे कहते हैं अगृहीतमिथ्यात्व और गृहीतमिथ्यात्व उसे कहते हैं जो विकारों से, बुद्धि से व सिखाये-बताये जाने पर सुदेव, कुशास्त्र, कुगुरु को देवशास्त्र, गुरु मानना । सो यह जीव प्रकृत्या अनादि से उपाधिवश मिथ्यात्व में जकड़ा है । जिस पर्याय में गया उसको ही आत्मस्वरूप मानने लगता है । मैं नारकी,
हूँ, तिर्यक हूँ, मनुष्य हूँ, देव हूँ, क्रोधी हूँ, मानी हूँ, सुखी हूँ, दुःखी हूं; जिस-जिस प्रकार के यह अपने परिणाम करता है उस-उस रूप यह अपने को बनाता रहता है ।
यहां यह तात्पर्य निकला कि रागादि की निवृत्ति के काल में कर्मजनित भावों से भिन्न केवल यह शुद्ध आत्मतत्त्व ही उपादेय है । अन्य कुछ उपादेय नहीं है । यह तात्पर्य हुआ । अब इसके बाद कहते हैं कि पूर्वोक्त कर्मों के उदय से उत्पन्न हुए भावों को जिन मिथ्यात्व परिणामों को करके यह बहिरात्मा अपने से उन्हें जोड़ता है, उन परिणामों का 5 सूत्रों में निवारण करेंगे ।