वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 69
From जैनकोष
मधुशकलमपि प्रायो मधुकर हिंसात्मको भवति लोके ।
भजति मधु मृढधीको य: स भवति हिंसकोऽत्यंतम् ।।69꠰꠰
मधुभक्षण में भी अनेक जीवसमूहों की हिंसा―इस श्लोक में शहद की बात चल रही है । शहद मक्खियों का वमन और विष्टा है । इसमें जीव निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं, अतएव, जो मूढ़ बुद्धि पुरुष शहद का भक्षण करते हैं वे अत्यंत हिंसा करते हैं । जैसे मनुष्य का मल और अथवा लार हो तो उसमें जीव निरंतर उत्पन्न होते हैं ऐसे ही मक्खियों के वमन और विष्टा से तैयार किया हुआ जो शहद है उसमें भी जीव निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं उसका खाना हिंसा है । जिसे इस हिंसा से बचकर अहिंसा धर्म पालना है उसे शहद के भक्षण का त्याग कर देना चाहिये ।