वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 128
From जैनकोष
इडि᳭ढमतुलं विउव्विय किण्णरकिंपुरिसअमरखयरेहिं ꠰
तेहि वि ण जाइ मोहं जिणभावणभाविओ धीरो ꠰꠰128꠰꠰
(516) भावश्रमण मुनि के अतुल ऋद्धि का लाभ―भावश्रमण मुनिवरों के तप के महत्त्व से अतुल ऋद्धियां स्वयं प्राप्त होती हैं ꠰ उन्हें ऋद्धियों का पता नहीं रहता कि मुझमें हुई है ꠰ जैसे विष्णुकुमार मुनि को अपनी विक्रिया ऋद्धि का पता न था, उन्हें पता कब पड़ा, जब एक क्षुल्लक ने वहाँ जाकर निवेदन किया कि महाराज हस्तिनापुर में 700 मुनियों पर भारी उपसर्ग हो रहा है, उन्हें घेरकर आग लगायी जा रही है? धुवां से कंठ रुध गया है ꠰ सो मुनिराज ने पूछा कि मैं क्या करूं? तो उस क्षुल्लक ने बताया कि आपको विक्रिया प्राप्त हुई है ꠰ अच्छा जब उन्होंने परीक्षा की, हाथ फैलाया तो लवण समुद्रपर्यंत फैलता चला गया ꠰ तो उन्होंने जाकर उनकी रक्षा की थी ꠰ ऐसी ऋद्धियों का मुनिवरों को पता ही नहीं रहता ꠰ जिनको मोक्ष मिलना है उनको ऋद्धियां होना कौनसी बड़ी बात है? तो एक तो मुनिवरों को अतुल ऋद्धियां स्वयं प्राप्त होती हैं, दूसरी ओर यह भी देखिये कि स्वर्ग के देव, भवनवासीदेव, व्यंतरदेव, विद्याधर लोग अपनी-अपनी कलायें दिखाते हैं, अनेक ऋद्धियों दिखाते हैं, उनको देखकर वे मुनीश्वर कभी मोह को प्राप्त नहीं होते ꠰ वे नहीं सोचते कि ऐसी ऋद्धियां मुझे क्यों न मिली ? ऋद्धियों का पता नहीं और जिनके ऋद्धियों का पता नहीं उनको ऋद्धियों का निरोध नहीं, क्योंकि ये सब जिनभावना से वासित हैं ꠰ आत्मा का दर्शन सहज स्वरूप अहेतुक मात्र चैतन्यस्वरूप है ꠰ इतना ही मात्र मैं हूं, इतने में ही मेरा व्यापार है, इतने में ही मेरा उपयोग है ꠰ इतनी ही मेरी सारी दुनिया ꠰ इससे बाहर मेरा कुछ नहीं ꠰ ऐसा निर्णय रखने वाले भावश्रमण मुनि के बाह्य चमत्कारों में मोह कैसे हो सकता है सो धन्य है उन मुनियों को जिनको अपनी ऋद्धियों का भी पता नहीं और जिनके ऋद्धियां न हुई हों वे दूसरे के चमत्कारों को देखकर मोहित नहीं होते ꠰ जो अपना ज्ञानस्वभाव है उसमें ही सदा नि:शंक रहते हैं, उनके जगत के वैभव के निरखने से कभी व्यामोह नहीं होता ꠰