वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 156
From जैनकोष
मायावेल्लि असेसा मोहमहातरुवरम्मि आरूढा ।
विसयविसपुष्फफुल्लिय लुणंतिमुणि णाणसत्येहिं ।।156।।
(579) ज्ञानशास्त्र से मायावेल का छेदन―मोहरूपी महावृक्ष पर चढ़े और विषयरूपी विष पुष्पों से फूली हुई इस मायारूपी लता को मुनिगण ज्ञानरूपी शस्त्र के द्वारा छेद डालते हैं । यह मायालता भीतरी माया, ऊपरी माया दो प्रकार की है । भीतरी माया तो है छल, कपट, दुर्विचार और ऊपरी माया है धन वैभव आदिक पुद्गलों का ढेर, ऐसी इस लता को मुनिजन ज्ञानशस्त्र के द्वारा छेद डालते हैं । सो लता कैसी है कि विषयरूपी फूलों से तो फूली है और मोह रूपी महावृक्ष पर चढ़ी है, इसको मुनिजन मूल से उखाड़ देते हैं । यह मनुष्य स्त्री पुत्रादिक के स्नेह में पड़कर नाना प्रकार की माया करता है । माया का स्वभाव है प्रतारण, दूसरे को ठगना । सो यह माया कषाय इस संसारभ्रमण का कारण है । यह मोहरूपी महान वृक्ष चढ़ा है माया कुटुंब के स्नेहरूपी मोह के वृक्ष से उपमा दी और माया को लता बताया और विषय को विषपुष्प बताया । कोई लता होती है तो उसमें फूल भी निकलते हैं । तो फूल क्या हैं ? विष पुष्प । विषयइच्छा को ज्ञानशस्त्र बल से ज्ञानियों ने मूलत: दूर किया है ।