वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षपाहुड - गाथा 34
From जैनकोष
रयणत्तयमाराह जीवो आराहओ मुणेयव्वो ।
आराहणाविहाणं तस्सफल केवल णाण ꠰꠰34꠰।
वास्तविक आराधना, आराधक, आराधानाविधान व आराधनाफल―हम आप सभी जीव आराधना बनाये रहते हैं, पर किसकी आराधना किया करते हैं, इसके अंतर से अंतर आ गया है । किसी तत्त्व पर दृष्टि लगाये रहना, उसी को ही हितकारीरूप से मानना यह कहलाता है आराधना । तो मोही पुरुष सचित्त परिग्रह के प्रति अपनी आराधना बनाये रहते हैं और ज्ञानी पुरुष रत्नत्रय की आराधना बनाते हैं । मेरे को मेरे सहज स्वरूप की श्रद्धा हो, उसी की ही धुन हो, उसी को ही जानता रहूं और उसको ऐसा जानता रहूं कि दूसरी बात ही बीच में न आये, ऐसे रत्नत्रय की आराधना करता है ज्ञानी पुरुष और वही वास्तविक आराधना है । और ऐसी आराधना का फल है केवलज्ञान । ज्ञान को जोड़-जोड़कर सर्वज्ञ कोई नहीं बन पाता । अभी इसे जाना, अब कुछ जाना, और जानने को जोड़ते जायें, सर्वज्ञ बन जायें, ऐसा नहीं होता । भले ही मीमांसक लोगों ने यह स्वीकार किया है कि ज्ञानों का संग्रह हो जाये, अनेक को जानते जावें, तो अनेक को जानने का जो संग्रह है वह सर्वज्ञता बनाता है पर यह तथ्य नहीं है, बाह्यअर्थ को जान जानकर कोई सर्वज्ञ नहीं बनता, किंतु सर्व बाह्य अर्थों का त्याग करके केवल अविकार-स्वभाव निज अंतस्तत्त्व में ही ज्ञान को लीन करे, सबको भूल जाये, किसी भी बाह्य पदार्थ को उपयोग में न ले तो केवल अंतस्तत्त्व का उपयोग रखने से केवलज्ञान बन जाता है, पर ज्ञानों को जोड़ करके सर्वज्ञता नहीं बनती । तो यही है आराधना, अपने स्वरूप की आराधना करना । उसका फल है निर्मल केवलज्ञान ꠰ सब जीवों को मोक्षमार्ग एक ही प्रकार का बताया है प्रभु ने । कहीं मोक्षमार्ग दो तरह का नहीं हो जाता, भले ही परिस्थितिवश व्यवहारधर्म का कर्तव्य है, पालन करने का संबोधन है, पर वह सब सुरक्षा के लिए है । जैसे युद्ध में ढाल और तलवार लेकर योद्धा उतरता है तो ढाल तो दूसरे का आक्रमण बचाने के लिए है और तलवार प्रहार करने के लिए है ऐसे ही हमारे व्रत, तप, शील, उपवास आदिक व्यवहारधर्म अपने को बचाने के लिए हैं, सुरक्षित रखने के लिए हैं कि कहीं गंदे भाव न हावी हो जायें । तो व्यवहारधर्म के वातावरण में रहकर यह जीव अपने को सुरक्षित बनाता है । कहीं व्यसन आदिक के विकल्प न जगें, ऐसी सावधानी बनाये हैं और उस सावधानी के समय यह आत्मस्वरूप की निरख करे तो इसको मोक्षमार्ग मिलता है, ऐसा आराधना का फल है ।