वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-11
From जैनकोष
एकादश जिने।।9-11।।
अर्हंत प्रभु के ग्यारह परीषहों की उपचारता अथवा असंभावना―जिन भक्ति में 11 परीषह हैं, ऐसा क्यों मानते हैं, इतना वाक्य और लगा लेना चाहिए । इसमें यह अर्थ ध्वनित होता कि उस प्रकार का कर्मोदय पहले रहता था जिसमें ये परीषह हुआ करते थे, उन कर्मों का यहाँ सद्भाव है । जिनेंद्र देव में 13 वें गुणस्थान में इस कारण परीषह का व्यपदेश किया जाये, किंतु महान कर्म जब नहीं है और परिपूर्ण ज्ञान केवलज्ञान हो गया है तो वहाँ परीषह का कुछ मतलब नहीं, इस कारण इस सूत्र का अर्थ यों किया जा सकता कि एक अ दस मायने न 1 परीषह है न 10/11हों परीषह नहीं हैं । यहाँ प्रश्न उठा कि केवली भगवान के घातिया कर्मों का नाश हो गया है सो अब नग्न अरति आदिक परीषहें नहीं होते है, किंतु वेदनीय कर्म का तो उदय है अत: वेदनीय के आश्रय होने वाले परीषहें होना ही चाहिएं । उत्तर―केवली भगवान में घातियाकर्म नहीं रहे सो घातियाकर्मों के उदय की सहायता से ही तो अन्य कर्म बलवान हुआ करते थे । सो घातिया कर्म रूपी सहायता न मिलने से अन्य कर्मों की सामर्थ्य नष्ट हो जाती है । जैसे कि मंत्र और औषधि के प्रयोग से विष की मारण शक्ति खतम हो गई, उस विष को खा लेने पर भी मरण नहीं होता, इसी प्रकार ध्यान अग्नि द्वारा घातिया कर्मरूपी ईंधन के जल जाने पर अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत आनंद के स्वामी केवली भगवान के अब अंतराय तो कुछ रहा नहीं और प्रतिक्षण साता वेदनीय का शुभ कर्म का आस्रव होता रहता है, और शुभ कर्मों का संचय बना है सो सहायता करने वाले कर्म नष्ट हो जाने से वेदनीय कर्म रहा है तो रहा आये पर वे अपना कार्य नहीं कर सकते । इसी कारण केवली भगवान में क्षुधा आदिक नहीं होते । उनका आनंद ही अनंत आनंद है । क्षुधा परीषह का प्रश्न ही क्या? अथवा उस-उस कर्म का उदय होने के कारण यह भी मान लो कि 12 परीषह होते हैं, पर वे ध्यान की तरह उपचार से माने गए हैं । जैसे कि ध्यान का अर्थ तो यह है कि किसी एक पदार्थ में ही चिंतवन का रुक जाना, पर केवली भगवान के मन ही नहीं है तो किस तरह उपयोग एकाग्र करें । इसलिए ध्यान तो न माना जाना चाहिये पर ध्यान का फल क्या है? कर्म का निर्जरण, वह यहाँ हो ही रहा है । तो ध्यानफल की बात यहाँ भी चलते रहने से केवली भगवान में उपचार से ध्यान कहा गया हे । ऐसे ही 11 परीषह चूंकि भगवान में उपचार से कहे जाना चाहिये अर्थात वेदनीय कर्म का उदय देखा जाता है । सो वही द्रव्य परीषह है । भावपरीषह जरा भी नहीं है कि उनके रंच भी परीषह होने पर कर्मों में परीषह है । वहाँ उस प्रकार का विपाक है सो कर्मों में द्रव्य परीषह देखकर 11 परीषहों का उपचार कर लिया जाता है । वस्तुत केवली भगवान में कोई भी परीषह नहीं हैं ।